Friday, August 17, 2007

........mera Naam Likha hai

गुल'शन की बहारों ने सर-ए-आम लिखा है
फिर उस'ने गुलाबों से मेरा नाम लिखा है

बेह्ते हुए पानि पे ये लफ़्ज़ों के सितारे
शायद मेरे मेह्बूब ने ये पैगाम लिखा है

ये दर्द मुसल्सल मेरे दिल मैं रहेगा
कुछ सोच कर उस'ने मेरा अनंजाम लिखा है

नींदों ने कहा ख्वाब से ये हाथ मिलाकर
क्या अप'ने मुकद्दर मैं कभी आराम लिखा है

जिस'ने कभी मेरी जानिब मुड कर नही देखा
उस शक्स के हथों मैं मेरा नाम लिखा है

राहि अप'नी तो हर रात गुज़र'ती है सफ़र मैं
आँखों की ज़ंजीरों पे ये पैगाम लिखा है

1 comment:

रवि रतलामी said...
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