Friday, April 1, 2016

ज़िन्दगी या सराब


ये रस्ते किधर ले आये हैं
ये वो दर नहीं
ये वो आसमान नहीं
ये वो सितारे नहीं
जो सपनो ने दिखाए हैं

कल जो अपने थे आज पराये  हैं
ये दिन इसी ज़िन्दगी ने दिखाए हैं

क्या पाया सपनो क पीछे भाग के
क्या मिल गया रातों को जाग के
खो गया सुकून ज़िन्दगी का
आज अपनी हालत से  ही हैरान है
ये वो ज़िन्दगी नहीं जिसका अरमान है

चले थे घर से भर के अरमानो की झोली को
छोड़ कर दोस्त यार हमजोली को
पकड़ ली शहर की राह छोड़ कर गाँव की डगर
फले और फूले वहां खुश हो क्या तुम मगर ..

माँ छूटी बाबा छूटे छूट गए सारे संगी
शहर की चौंध में खो गयी दुनिया सतरंगी
ऐसी क्या चाह थी जो भाग कर यहाँ आये
ये तो वो ज़िन्दगी नहीं सपनो ने जो दिखलाये

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